छत्तीसगढ़ पर्यटन : चंपारण्य में जानिये कैसे होती है पर्यावरण की देखभाल ? champaran temple in Chhattisgarh
चंपारण्य कहॉ है, चंपारण (cg tourism) के बारे में जानने के लिये उसका नाम क्यों पड़ा यह भी जानना जरूरी है तो दोस्तों आपको बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि कभी यहां चंपा फू ल के वन की भरमार थी। इसीलिए इसका नाम चंपारण्य तथा चांपाझर पड़ा।
Champaran chhattisgarh-चंपारण में नहीं होती है होलिका दहन….
पर्यावरण की देखभाल– चंपारण में पेड़ पौधों की सुरक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। चंपारण में जगतगुरू वल्लभाचार्य जी की जन्मस्थली व खूबसूरत मंदिर (Champaran mandir) के बीच में आने वाले बड़े-बड़े दरख़्तों को भी काटा नहीं गया है और उन्हें आगे बढऩे की जगह बल्कि मंदिर की दीवारों तथा छतों के बीच से दी गई है। वृक्षों के संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है, तथा यह जानकर हैरानी होगी कि यहां होलिका दहन नहीं किया जाता, क्योंकि वृक्षों को काटने की मनाही है।धार्मिक भावनाओं के अनुसार वृक्षों की कटाई घोर पाप माना जाता है।
दर्शनीय गौशाला-गाय (Champaran chhattisgarh tourism)
चंपारण में गौवंश रक्षा को भी बड़ा महत्व दिया गया है। यहां एक विशालकाय गौशाला में पलती हष्ट पुष्ट गाय जनाकर्षण के केन्द्र हैं। गाय बछड़ों के लालन पालन में मंदिर के सेवादार निष्ठापूर्वक लगे होते हैं।बीमार,लावारिस गायों की समुचित देखभाल ऐसे की जाती है मानो बृद्ध माता पिता हों। यहां हवा प्रकाश हेतु लगे सुब्यवस्थित पंखे -लाईटऔर चारे-पानी के माकूल प्रबंध को देखते समय गौ सेवा के लिए प्रेरणा मिलती है।
प्राचीन चम्पेश्वर नाथ मंदिर (Champaran chhattisgarh in hindi-)
सघन वनों से घिरे महाप्रभु वल्लभाचार्य के प्रकाट्य स्थल पर हजारों वर्ष पूर्व स्वअवतरित त्रिमूर्ति चम्पेश्वर नाथ का मंदिर भी दर्शनीय है।ऐसी किवदंती है कि इस शिवलिंग का दुग्धाभिषेक करने एक गाय रोज आती थी।जिसे गाय पालक ग्वाले ने एक दिन देख लिया और इस बात की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। इस स्थल पर स्वअवतरित शिवलिंग में ऊपर की ओर गणपति मध्यभाग में शिव और निचले हिस्से में माता गौरी का समेकित रूप दृष्टिगोचर होता है। इसलिए इसे त्रिमूर्ति शिव के नाम से प्रसिद्धि मिली।इस मंदिर में गर्भवती महिलाओं का जाना वर्जित है।अन्य श्रद्धालु महिलाओं को केश खोलकर ही मंदिर भीतर जाने की अनुमति है।