
cg news live : क्या है सलवा जुडूम? कैसे हुई इसकी शुरुआत? ये रही पूरी कहानी – chhattisgarhtak
सलवा जुडूम. एक आदिवासी शब्द. जिसका मतलब है- शांति का कारवां. लेकिन इसका चरित्र इस शब्द के ठीक उल्टा था. कभी कट्टर कम्युनिस्ट नेता रहे महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस में आने के बाद सलवा जुडूम की शुरुआत की. बात 2005 की है. chhattisgarh (cg news today) में रमन सिंह की बीजेपी सरकार थी. रमन सिंह के सलवा जुडूम इतना पसंद आया कि उन्होंने सलवा जुडूम को अपना लिया. पॉलिटिकल एक्सपर्स्ट बताते हैं आपको बता दें।कि सलवा जुडूम के जनक महेंद्र कर्मा रमन सरकार के 13वें मंत्री थे. उन्होंने नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में सबक सिखाने की तैयारी की. फिर आदिवासियों को हथियार देने और SPO यानी स्पेशल पुलिस ऑफिसर बनाने के अभियान की शुरुआत की, जिसे सलवा जुडूम कहा गया.
सलवा जुडूम का असर भी देखा गया. आदिवासियों की मदद से माओवादियों के ठिकानों और जंगल में चल रही उनकी गतिविधियों की जानकारी सरकारी सुरक्षा एजेंसियों को मिली. गांववालों ने भी माओवादियों को शरण देने से लेकर राशन-पानी में सहयोग देना कम कर दिया. कुछ जगह आदिवासी स्पेशल ऑफिसर्स ने माओवादियों का सामना किया और उन्हें गांव से मार भगाया. माओवादियों के पैर उखड़ने लगे, तो उन्हें पुलिस के भेदिये का आरोप लगाकर गांववालों को जनता की अदालत में मौत की सजा देने का सिलसिला शुरू कर दिया.
तीन हजार रुपए हर महीने मिलते थे एसपीओ को
सलवा जुडूम के एसपीओ को 3000 रुपए महीना और लड़ने के लिए एक बंदूक दी जाती थी. बदले में उसके परिवार को सरकारी कैंप में रखा जाता था. अब हुआ यूं कि माओवादियों के निशाने पर एसपीओ तो आए ही. साथ ही सरकारी कैंपों पर भी माओवादियों के हमले बढ़ने लगे. एसपीओ के परिवार वालों को मारने लगे. अब जब कोई एसपीओ मर जाता तो गांव वाले उसकी जमीन पर दूसरे आदिवासी कब्जा कर लेते. इस कारण भी सलवा जुडूम आंदोलन को झटका लगा.
आज भी पुलिस कैंपों में रह रहे आदिवासी
खूनी संघर्ष की घटनाएं बढ़ीं तो कुछ संगठनों ने सलवा जुडूम के औचित्य पर बहस छेड़ दी. कहना था- हथियारबंद माओवादियों से लड़ने का काम राज्य पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों का है. पुलिस गरीब आदिवासियों को अपनी ढाल बना रही है. इस बीच शिकायतें भी मिली की एसपीओ बंदूक के दम पर वसूली करे लगे हैं. गांव वालों से पुरानी रंजिशों का बदला ले रहे हैं. ये संघर्ष कई सालों तक चला. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2011 को सलवा जुडूम को खत्म करने का फैसला सुनाया. हालांकि, जानकारों की माने तो आज भी पुलिस कैंपों में आज भी कई आदिवासी रह रहे हैं. खासकर वो, जिन्हें नक्सलियों से खतरा है.
कमजोर पड़े तो नक्सलियों कर दिया हमला
कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद ना तो राज्य सरकार ने सलवा जुडूम को वापस लिया और ना ही महेंद्र कर्मा ने अपने इस आंदोलन को छोड़ा. उल्टे उन्होंने पूरे दमखम के साथ आदिवासियों को माओवादियों के खिलाफ लामबंद करना शुरू कर दिया. हालांकि, जब माओवादी कमजोर पड़ने लगे तो उन्होंने 25 मई 2013 को कांग्रेस का काफिले पर हमला कर दिया. जिसमें महेंद्र करमा समेत कांग्रेस के कई नेता मारे गए. नक्सलियों के इस हमले ने कांग्रेस की एक पीढ़ी ही खत्म कर दी.
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