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india news in hindi : सकारात्मक सोच रखने से रहेंगे तनाव मुक्त : डॉ राजलक्ष्मी

—लोगों से उम्मीद करना बन्द करने पर आधा तनाव खत्म

प्रयागराज, 13 मई . तनाव का मानव शरीर से अभिन्न रिश्ता है. यह तनाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में होता है. पाठकोंहमेशा अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखें, इससे पाठकोंतनावमुक्त रहेंगे. तनाव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है, इसलिए मनुष्य को जीवन में खुश रखना बहुत जरूरी है. कभी अपने को दूसरे से तुलना न करें, क्योंकि प्रत्येक की अपनी विशेष बनावट होती है. इसलिए अपना जीवन जीने की आवश्यकता है. जिस दिन पाठकोंलोगों से उम्मीद करना बन्द कर देंगे जीवन का आधा तनाव वहीं खत्म हो जायेगा.

उक्त विचार बतौर मुख्य वक्ता युनाइटेड विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष डॉ राजलक्ष्मी श्रीवास्तव ने ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में आई.क्यू.ए.सी की तरफ से शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यक्त किया. उन्होंने तनाव के मुख्य कारण और उसकी रोकथाम पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि हमें अपने आपको कभी छोटा साबित नहीं करना चाहिए. जीवन में कभी रूप और दौलत का अहंकार नहीं पालना चाहिए. इससे हमें परहेज करना चाहिए. समाज में विभिन्न जाति, धर्म के लोग रहते हैं. विभिन्न तरह की भाषाएं बोली जाती हैं. दूसरे लोग क्या बोल रहे हैं, उस पर ध्यान न देकर हमें अपने बारे में सोचना चाहिए. अपने समय का महत्व रखना चाहिए. आज का काम कल पर टाल देना तनाव का कारण बनता है, इसलिए कल के लिए कुछ छोड़ना नहीं चाहिए.

डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स एण्ड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डॉ शेफाली नन्दन ने कम्यूनिकेशन स्किल पर कहा कि सांसें स्वस्थ और अस्वस्थ दो प्रकार की होती हैं. सीने से श्वॉस लेना अस्वस्थकर माना जाता है, जबकि पेट से सांस लेना स्वस्थकर होता है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत लोगों का तनाव गलत सम्प्रेषण द्वारा होता है. हमारा खड़ा होना, बैठना इन सबका एक महत्वपूर्ण कारण है और हम इसको अनेक तरह से समझते हैं. कम्युनिकेशन एक पेचीदा मामला है इसमें हमें सिर्फ बोलना ही नहीं देखना और समझना भी आना चाहिए. संचार में कोई एक सही तो दूसरा सही नहीं होता. कभी-कभी दोनों लोग सही नहीं होते. एक-दूसरे के बीच भाषा संचारित होती रहती है. यह हमें नकारात्मक संचार की ओर ले जाती है और साहसहीन बनाती है. संचार में अपना टोन ही अपने मनोभावों को व्यक्त करता है. भाव कई प्रकार के होते हैं, लेकिन संचार में अपने भावों को संयमित करके ही दूसरे के पास सम्प्रेषित करना चाहिए.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य प्रो. आनन्द शंकर सिंह ने व स्वागत वक्तव्य आई.क्यू.ए.सी की समन्वयक डॉ अनुजा सलूजा ने किया. संचालन डॉ शाइस्ता इरशाद ने एवं आभार ज्ञापन डॉ रुचि गुप्ता और डॉ वेद प्रकाश मिश्र ने किया. इस अवसर पर कॉलेज के सभी शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी उपस्थित रहे.

/विद्या कान्त/आकाश

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Compiled: jantapost.in
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