tribal art : छत्तीसगढ़ की कला पहुंची दुबई, ट्राईबल कला से विदेशों में बढ़ा मान…

tribal development : प्रदेश में कला (tribal art) और संस्कृति (tribal culture) की विरासत को सहेजने का काम आदिवासियों द्वारा उनके क्षेत्र में किया जाता है। आदिवासी कलाकृतियों की छाप तो पूरे विश्व में है पर अब छत्तीसगढ़ के कलाकृतियों का लोहा दुनिया मान रही है। इसी का एक उदाहरण है कोंडागांव जहॉ की पंखुड़ी सेवा समिति की महिलाओं ने अथक परिश्रम कर अपने कारोबार को छत्तीसगढ़ से दुबई तक पहुंचाया है।
chhattigarh: श्रृंगार ट्राइबल ज्वेलरी की दुबई में मांग
tribal art : छत्तीसगढ़ के कोंडागांव (kondagaon art) की पंखुड़ी सेवा समिति की महिलाओं ने तैय्यार किया है श्रृंगार ट्राइबल ज्वेलरी जो बेल मेटल से बना है। यह अब दुबई के सराफा बाजार में भी भारी बिक रहा है। यही नहीं महिलाओं को दुबई एक्सपोर्ट हुए बेल मेटल ट्राइबल ज्वेलरी ये १ लाख तक की कमाई भी की है।
महिलाओं द्वारा अपने हुनर को ताकत बना कर आर्थिक रूप से सशक्त बनने से हर जगह उनकी तारीफ हो रही है। आपको बता दें कि जनजातीय कलाओं में छत्तीसगढ़ (chhattigarh) के बस्तर की कला प्रमुख है। बस्तर के कला कौशल को मुख्य रूप से काष्ठ कला, बाँस कला, मृदा कला, धातु कला में विभाजित किया जा सकता है।
tribal culture of chhattisgarh –
tribal development : बांस कला में बांस की शीखों से कुर्सियां, बैठक, टेबल, टोकरियाँ, चटाई, और घरेलु साज सज्जा की सामग्रिया बनायीं जाती है। मृदा कला में , देवी देवताओं की मूर्तियाँ, सजावटी बर्तन, फूलदान, गमले, और घरेलु साज-सज्जा की सामग्रियां बनायी जाती है। धातु कला में ताम्बे और टिन मिश्रित धातु के ढलाई किये हुए कलाकृतियाँ बनायीं जाती है, जिसमे मुख्य रूप से देवी देवताओं की मूर्तियाँ, पूजा पात्र, जनजातीय संस्कृति की मूर्तियाँ, और घरेलु साज-सज्जा की सामग्रियां बनायीं जाती है।
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दुनिया-भर के कलाप्रेमियों का ध्यान आकृष्ट करने में सक्षम
tribal cg – बस्तर में शिल्प-परंपरा और उसकी तकनीक बहुत पुरानी है। बात की जाये हस्तशिल्प की तो बस्तर अंचल में चाहे वे आदिवासी हस्तशिल्प हों या लोक हस्तशिल्प, दुनिया-भर के कलाप्रेमियों का ध्यान आकृष्ट करने में सक्षम रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि , इनमे इस आदिवासी बहुल अंचल की आदिम संस्कृति की सोंधी महक बसी रही है।
इसके अलावा बात की जाये आधुनिक समय की तो छत्तीसगढ़ में प्रदेश की आदिवासी कला को निखारने के लिये प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव व कला के लिये आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में हस्तकला तथा नृत्य व खान-पान की संस्कृति को दर्शाया जाता है।