Savitribai Phule : 1897 प्लेग बीमारी से लड़ी लड़ाई

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Savitribai Phule : सावित्रीबाई फुले माहिती – एक ऐसा नाम है जो भारत के इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। महिलाओं के क्रांतिकारी जुझारूपन की बात होती है तो कई नाम हमारे सामने आते हैं । सावित्री बाई फुले जी का योगदान भारत की शिक्षा और सामाजिक दिशा बदलने में रहा है। ऐसे समय में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था उस समय उनका विचार था कि  शिक्षा एक ऐसी चीज है जो उम्र की परवाह किए बिना सभी को मिलनी चाहिए।  इसी विचार के कारण वह ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित करने वाली पहली महिला लेखिका/कवि थीं।  उन्होंने वर्चस्व, दमन और अंधविश्वास के खिलाफ कविताएं और निबंध लिखे और लेखन को अपना प्राथमिक हथियार बनाया। 1854 में उन्होंने अपना कविता संग्रह “काव्यबुले” प्रकाशित किया। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया।

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savitribai phule mahiti – यहॉ आपको नीचे बताया जा रहा है कि कैसे सावित्री बाई ने प्लेग बीमारी से लड़ने की ठानी और सामाजिक भूमिका निभाई थी।

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who is savitribai phule – पाठकों यहॉ पर आपको बताया जा रहा है कि  पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। वैसे बात जन्म की करें तो (savitribai phule born )सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था।

लड़कियों को शिक्षा से जोड़ा

सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया।  1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए।  एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में। 2015 में, पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय कर दिया गया।

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savitribai phule education – पाठकों यहॉ पर आपको बताया जा रहा है कि वे स्कूल जाती थीं, तो लोग गंदगी फेंक देते थे पत्थर मारते थे । आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा अग्रेजों सरकार से जुझते हुए एक अकेला बालिका विद्यालय खोला था जैसा कि आपको ऊपर बताया गया है।

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बात विधवा विवाह की करें तो सावित्री बाई फुले का नाम हमेशा इस परंपरा को लाने में याद किया जाता है उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर, 1873 को कराया गया। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया।

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सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी।

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सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा कर उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया था जो  बाद में डॉक्टर बना। आपको नीचे बताया जायेगा कि कैसे सावित्री बाई फूले ने एक भयानक बीमारी से भी लड़ाई लड़ी।

Savitribai Phule : प्लेग से लड़ाई रखी जारी

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यह बात है 1897 की जब देश में प्लेग ( plage in india )प्रकोप के दौरान वहाँ सावित्रीबाई (savitri bai phule )ने स्वयं स्वेच्छा से अनेक लोगों की सहायता की। , सावित्रीबाई और उनके बेटे यशवंत ने संयुक्त रूप से आम जनता की मदद के लिए एक अस्पताल की स्थापना की।  जब हर कोई पीड़ितों को अस्पताल ले जाने से डरने लगा तो सावित्रीफाई ने खुद जाकर उन्हें भर्ती कराया.   प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी और संक्रमण के कारण ही 10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का देहावसान हो गया परंतु जाते-जाते भी उन्होंने सामाजिक सेवा की मिसाल पेश कर दी।

जनता पोस्ट में यह जानकारी  आपको मिली ऐसे ही जानकारी पाने के लिये जुड़े रहें।

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