devi kawach : आधुनिक चिकित्सा विज्ञान व देवी कवच

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मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा कवच देवी कवच (devi kawach) का वर्णन है। इसमें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत बताये गये मानव शरीर के लगभग सभी महत्वपूर्ण बाह्य और आंतरिक संरचनाओं का उल्लेख है। इतना ही नहीं इसमें शरीर क्रिया विज्ञान के साथ विभिन्न गुणों का भी वर्णन है जो मानव की प्रकृति और व्यवहार को निर्धारित करते हैं।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी देवी कवच…..

यह कवच शरीर की सभी रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयों की चिंता करते हुए स्वस्थ रहने के लिए उनकी रक्षा और देखभाल की सलाह देता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी दीर्घायु के लिए, स्वस्थ/ रोग मुक्त जीवन यापन के लिए शारीरिक संरचना तथा कार्यिकी में प्रत्येक संरचनाओं के महत्व को प्रतिपादित करता है। मेरी दृष्टि में देवी कवच के अनुसार भी शरीर की सभी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रचनाओं की सुरक्षा के साथ सामंजस्य का परिणाम ही निरोगी स्वस्थ काया है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए देवी कवच में शरीर की बाहरी और आंतरिक संरचना के लिए किसी एक देवी का उल्लेख न करते हुए प्रत्येक संरचना की रक्षा के लिए अलग-अलग देवियों का वर्णन है अथार्त मनुष्य को स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के लिए शरीर की प्रत्येक संरचना पर ध्यान दे कर उसकी सुरक्षा/देखभाल के लिए उचित प्रयास करना चाहिए।

दुर्गा कवच का पाठ – दुर्गा कवच स्तोत्र

देवी कवच (devi kawach) में मस्तक के लिए उमा,ललाट के लिए मालाधारी, भौंहों के लिए यशस्विनी, भौंहों के मध्य भाग के लिए त्रिनेत्रा, नथुनों के लिए यमघंटा, नासिका के लिए सुगन्धा, ऊपर के ओंठ के लिए चर्चिका, नीचे के ओंठ के लिए अमृतकला, जिह्वा के लिए सरस्वती, दांतों के लिए कौमारी,कण्ठप्रदेश के लिए चण्डिका,कण्ठ के बाहरी भाग के लिए नीलग्रीवा, कण्ठ की नली के लिए नलकूबरी,गल-घंटी के लिए चित्रघण्टा,तालू के लिए महामाया, ठोढ़ी के लिए कामाक्षी, वाणी के लिए सर्वमंगला, ग्रीवा के लिए भद्रकाली, दोनों कंधों के लिए खड्गिनि, दोनों भुजाओं के लिए वज्रधारणी, दोनों हाथों के लिए दण्डली, उंगलियों के लिए अम्बिका, नखों के लिए शूलेश्र्वरी, कुक्षि (पेट) के लिए कुलेश्वरी, दोनों स्तनों के लिए महादेवी, नाभि के लिए कामिनी,लिंग के लिए पूतना और कामिका,गुदा के लिए महिषवाहिनी,कटि के लिए भगवती, घुटनों के लिए विन्ध्वासिनी,पिण्डलियों के लिए महाबला, दोनों घुट्टियों के लिए नारसिंही, दोनों चरणों के पृष्ठभाग के लिए तैजसी, पैरों की उंगलियों के लिए श्रीदेवी, पैरों के तलुओं के लिए तलवासिनी, पैरों के नखों के लिए दष्ट्राकराली, केशों के लिए ऊर्ध्वकेशिनी,रोमावलियों के छिद्र के लिए कौबेरी, त्वचा के लिए वागीश्वरी, मूलाधार के लिए पद्मावती, नख के तेज के लिए ज्वालामुखी, शरीर की समस्त संधियों के लिए अमेद्यादेवी, आदि से रक्षा की याचना की गई है।

दुर्गा कवच इन हिंदी

इसी कवच में शरीर के आंतरिक अंगों में पृष्ठ वंश (मेरुदंड) के लिए धनुर्धरी, हृदय के लिए ललिता देवी,उदर और उसके अंगों के लिए शूलधारणी,गुह्यभाग के लिए गुह्येश्र्वरी, रक्त, वसा,मांस, हड्डी के लिए पार्वती, आंतों के लिए कालरात्रि,कफ के लिए चूणामणि, वीर्य के लिए बह्माणी से तथा रस, रूप,गंध, शब्द, स्पर्श का ज्ञान कराने वाले संवेदी अंगों की रक्षा के लिए योगिनी देवी से प्रार्थना की गई है।

दुर्गा कवच पाठ के लाभ –

देवी कवच (devi kawach) देवीय कवच में शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, आंतरिक और बाहरी व्यक्तित्व, स्वाभाव, सौन्दर्य,गुण-दोष आदि को निर्धारित करने वाले मानव के आचार, विचार, व्यवहार तथा कर्म तथा गुणों की रक्षा के लिए भी विभिन्न देवीयों से प्रार्थना का वर्णन भी मिलता है यथा -अंहकार,मन, बुद्धि के लिए धर्मधारिणी से, प्राण,अपान, ध्यान,उदान,समान वायु के लिए वज्रहस्ता से,प्राण के लिए कल्याणशोभना से, सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण के लिए नारायणी से,आयु के लिए वाराही से,प्रार्थना की गई है । इसका मतलब यही है कि मनुष्य इन गुणों के माध्यम से संवेदनशील मानव बने रहते लंबे समय तक मानवता का पालन करता रहे।

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देवी कवच (devi kawach) मनुष्य में समय के साथ यश, कीर्ति,धन, विद्धता का अभिमान न हो,वह धर्म के मार्ग पर चलता रहे इसी उद्देश्य से इस कवच में धर्म के लिए वैष्णवी से,यश, कीर्ति,धन, विद्या के लिए चक्रिणी से रक्षा मांगी गई है। मनुष्य अपने जीवन में वंश तथा पशुधन के महत्व को विस्मृत न करें इस दृष्टि से गोत्र के लिए इंद्राणी से और पशुधन के लिए चण्डिका से रक्षा का आग्रह किया गया है। वहीं परिवार के महत्त्व और शाक्ति को ध्यान में रखते हुए पुत्र-पुत्रियों की रक्षा के लिए महालक्ष्मी से, पति-पत्नी के लिए भैरवी से रक्षा की प्रार्थना की गई है।

मनुष्य सत्कर्म से न भटके, उसका मार्ग निष्कंटक रहे, उसका मार्गचयन सही रहे, सही मार्ग पर चलने में उसे किसी भी प्रकार का भय और भ्रम न रहे, उससे कोई पाप कर्म न हो और उसमें विकार जन्म न लें इसे ध्यान में रखते हुए पथ के लिए सुपथा से, मार्ग के लिए क्षेमकारी से,भयनाश के लिए विजया से, पापों के नाश के लिए विजयशालिनी से रक्षा की प्रार्थना है।

देवी कवच (devi kawach) :

अतः यदि समग्रता में दुर्गा कवच को देखा जाए तो यह मनुष्य को विभिन्न बुराइयों से दूर रहने का आग्रह करता, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी बनने के लिए शरीर के सभी अंगों, तथा उत्तम आचरण एवं व्यवहार पर नियमित रूप से ध्यान देने की बात करता है,उनकी देखभाल करने की सलाह देता है।मेरी दृष्टि से इतनी सूक्ष्म दृष्टि से मानव शरीर की रचना, कार्यिकी, व्यवहार तथा जीवन-दर्शन पर चर्चा और मार्गदर्शन एकसाथ किसी एक अध्याय में शायद ही कहीं पढ़ने को मिलती हो। यही तो सनातन धर्म और सनातन धर्म ग्रंथों की विशेषता है कि वे केवल पूजा-पाठ-ध्यान-ईश्वरी गुण ज्ञान बखान नहीं करते,वे मानव को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं,मनुष्य बनाते हैं और राक्षसी प्रवृत्तियां से बचने की सलाह देते हैं।

  • लेखक:डा मनमोहन प्रकाश

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