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Paryavaran pradushan nibandh : मेरी पीढ़ा समझे न कोय

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paryavaran pradushan nibandh – मैं पर्यावरण, जैविक और अजैविक घटकों का समुच्चय, प्रकृति और जीवों के विकास के लिए आवश्यक हूंँ। दोनों का ही स्वास्थ्य और आयु मेरे स्वास्थ्य और अस्तित्व पर निर्भर है। मेरा स्वास्थ्य प्रमुख रूप से पंचतत्वों (जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश) की प्रकृति और मानव के व्यवहार पर आश्रित है। मैं ही समस्त जीवों (जीव जंतु, पेड़ पौधे और मनुष्य) के लिए आवास, भोजन, प्राणवायु ,पानी, ऊर्जा और अन्य आवश्यक जरूरतों को पूरा करता हूंँ। वस्तुतः मैं जीवों को प्रकृति प्रदत्त वह उपहार हूंँ जो जीवन को पोषित करते हुए विकासवान बनाए रखता हूंँ। अर्थात् मानव सहित समस्त जीवों के विकास के लिए उत्तरदायी भी हूंँ। जीवों का अच्छा और बुरा स्वास्थ्य मेरे अच्छे और बुरे स्वास्थ्य पर निर्भर है और मेरा अच्छा और बुरा स्वास्थ्य मानवीय गतिविधियों पर निर्भर है। यह तथ्य इस धरा की सर्व श्रेष्ठ कृति मानव को समझना जरूरी है। कहने का मतलब यही है कि मैं (पर्यावरण) और मानव सहित सभी जीव एक दूसरे के बिना जिंदा नहीं रह सकते,एक दूसरे के लिए आवश्यक हैं, सह- अस्तित्व के बंधन से बंँधे हुए हैं।

paryavaran pradushan nibandh : मैं आज के मानव से पूछना चाहता हूंँ कि बिना सोचे समझे मेरे (पर्यावरण के) सभी घटकों को प्रदूषित करने पर क्यों आमादा हो? यह जानते हुए भी कि वातावरण का प्रदूषित होना मानव स्वास्थ्य और आयु के लिए अच्छा नहीं है। पर्यावरण की आज तुमने क्या स्थिति बना रखी है? ना तो तुमने प्रदूषण मुक्त आवासीय जगह छोड़ी है,ना ही श्वास लेने के लिए प्रदूषण मुक्त प्राणवायु, ना ही पीने के लिए प्रदूषण मुक्त जल और ना ही मिलावट से मुक्त खान-पान की वस्तुएंँ । तुमको कितनी बार आगाह किया कि प्रदूषित वातावरण मानव को विभिन्न बिमारियों से जकड़ रहा है, विभिन्न आपदाओं को आमंत्रित कर रहा है, अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है,असमय मृत्यु के मुख में ढकेल रहा है। हे प्रिय मानव फिर भी तुम ना सोचने, समझने,ना विचारने को तैयार हो और ना ही अपनी जीवन शैली और आदतों को सुधार रहे हो, प्रकृति सम्मत बना रहे हो। ऐसा लगता है तुमने ठान ही लिया है कि मैं जिस डाल पर बैठूंँगा उसे अवश्य काटूंँगा,अपना अनिष्ट करने से नहीं चूकूंँगा। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि जो स्वयं का नहीं,उसकी ईश्वर भी मदद नहीं करता।

vishwa paryavaran diwas kab manaya jata hai

भारत में दिल्ली की जनता आजकल पर्यावरण प्रदूषण से त्राहि-त्राहि कर रही है। कभी शिक्षण संस्थानों को बंद किया जाता है,तो कभी वाहनों को ओड- ईवन फार्मूला अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है, कभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने का आग्रह किया जाता है, कभी प्रदूषित वायु को खींचने के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है, कभी कृत्रिम वर्षा कराने पर विचार किया जाता है।अब तो न्यायलय भी आग्रह कर रहे हैं कि फटाखों का उपयोग कर दिल्ली को और प्रदूषित मत करो।सभी उपाय असफल हो रहे हैं क्योंकि स्वार्थी और सुविधा भोगी मानव सुधरने को तैयार नहीं है।

अन्य शहरों की पर्यावरणीय समस्याएंँ भी कमोवेश एक जैसी ही हैं। फर्क इतना है कहीं इनका प्रभाव कम है तो कहीं ज्यादा। इतना सब होने के बाबजूद भी दीपोत्सव पर मानव प्रदूषण फैलाने वाले प्रकाश और आवाज वाले पटाखों का उपयोग नहीं करेगा या कम करेगा मुझे शंका ही है। पता नहीं मनुष्य को बच्चों के जन्म पर, जन्मदिवस पर,वर्षगांठ पर,विवाह उत्सव पर फटाखे फोड़ने में क्यों और क्या मज़ा आता है? ऐसा लगता है मनुष्य जीवन में फटाखे फोड़ने तथा आतिशबाजी करने के अवसर की तलाश में लगा रहता है। तभी तो नव वर्ष पर, तीज़ त्यौहार पर, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर,चुनाव के टिकट मिलने पर, चुनाव प्रचार के दौरान,चुनाव जीतने पर, मंत्री बनने पर, भारतीय खेल टीम की जीत में, किसी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता आदि पर आतिशबाजी का बहाना ढूंढ ही लेता है।

paryavaran ke ghatak – मैं (पर्यावरण)देख भी रहा हूंँ और अनुभव भी कर रहा हूंँ कि भारत ही क्यों अखिल विश्व पिछले कई दशकों से विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं से त्रस्त है, दुखी है। सभी देश के राजनेता, वैज्ञानिक और नागरिक पर्यावरण की समस्याओं और उसके परिणामों से भलीभांति परिचित हैं, विभिन्न संगोष्ठियों, चर्चाओं के माध्यम से विचार-विमर्श भी करते रहते हैं। किन्तु पर्यावरण में सुधार के लिए ना तो कोई देश और ना ही वहां की जनता अपनी आवश्यकताओं को सीमित करने को तैयार है और ना ही सुख सुविधा, हित और तथा-कथित विकास से समझौता करना चाहती है। विभिन्न देशों ने सुरक्षात्मक और आक्रामक कारणों से प्रदूषण और मानव के लिए घातक रासायनिक एवं परमाणु हथियार के परीक्षण और उपयोग से पर्यावरण की चिंता को और बढ़ाया है। मैंने रूस और यूक्रेन युद्ध में विभिन्न प्रकार के हथियार,गोला-बारूद, मिसाइल , राकेट के उपयोग से सभी को चिंतित और दुःखी देखा है,अब तो हमास और इजरायल के मध्य युद्ध ने इस पीढ़ा और घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है। युद्ध में उपयोग किये जा रहे अस्त्र-शस्त्र न सिर्फ सेना और प्रजा को सामुहिक रूप से मार रहे हैं, मौत के घाट उतार रहे हैं, विकलांग बना रहे हैं, अपितु जीव-जंतु और पेड़-पौधे को भी मारकर जैव-विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं, प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ रहे हैं,इस धरा को नरक बनाने पर आमादा है। तभी तो विकास की प्रतीक इमारतों, स्कूल-कालेजों, अस्पतालों , कारखानों, शहरों को खंडहर में बदल रहे हैं‌।

paryavaran in hindi

hindi language paryavaran par essay : मानवता को तार-तार कर रहे हैं । बच्चे को अनाथ कर रहे हैं , मां बाप को संतान विहीन बना रहे हैं और स्त्रियों को विधवा जीवन जीने के लिए मजबूर कर रहे हैं। ऊपर से विभिन्न देशों के सामरिक दृष्टि से बनते नये समीकरण विश्वयुद्ध और परमाणु युद्ध की आशंकाओं से मुझे डरा रहे हैं। ऐसा लगता है मनुष्य की बढ़ती आकांक्षाएंँ उसके ही सर्वनाश पर उतारू हैं। मैं पर्यावरण इन परिस्थितियों में ईश्वर से मानव को सद्बुद्धि देने की प्रार्थना के सिवा और कर ही क्या सकता हूं?

लेखक:डा. मनमोहन प्रकाश

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